Dimagi Gulami (दिमागी गुलामी)


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About The Book

लेखक के अनुसार दिमागी गुलामी से तात्पर्य मानसिक दासता से है। ये मानसिक दासता प्रान्तवाद क्षेत्रवाद जातिवाद व राष्ट्रवाद के नाम पर मनुष्य के मन-मस्तिष्क को जकड़ रही है। मनुष्य की सोच इन्हीं बातों पर टिकी है जिससे संकीर्णता की भावना ने अपना प्रभाव जमा लिया है।लेखक कहते हैं आज जिस जाति की सभ्यता जितनी पुरानी होती है उनके मानसिक बंधन भी उतने ही अधिक जटिल होते हैं। हमारी सभ्यता जितनी पुरानी है उतनी ही अधिक रुकावटें भी हैं। हमारी आर्थिक सामाजिक राजनीतिक समस्याएं इतनी अधिक और जटिल हैं कि हम उनका कोई इलाज सोच ही नहीं सकते जब तक हम अपनी विचारधाराओं को बदलकर सोचने का प्रयत्न नहीं करते हैं। हम अपने पूर्वजों की धार्मिक बातों को आंख मूंदकर मान लेते हैं। आज समाज में धर्म-प्रचार पूर्ण रूप से नफे का रोजगार है अधिकांश लोग आज इसे अपने व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं। दुनिया भर में कई लोग भूत-प्रेत जादू-मंत्र सबको विज्ञान से सिद्ध करने में लगे हैं।हिन्दुस्तान का इतिहास देश और काल के हिसाब से बहुत प्राचीन है उसी तरह इसमें पाई जाने वाली मान्यताएं अंधविश्वास भी बहुत अधिक हैं। हमारे देश में विभिन्न महान ऋषि-मुनि हुए जिन पर हमें हमेशा अभिमान रहा है। इसलिये राष्ट्रीयता के पथ पर चलने वालों को भी समझना चाहिये कि उन्हें देश के उत्पादन के लिये इन दीवारों को गिराना होगा। आज हमें बाहरी क्रांति से ज्यादा भीतरी क्रांति (मानसिक क्रांति) की आवश्यकता है।आशा करते हैं कि यह पुस्तक पाठकों के मानसपटल में गहरी छाप छोड़ेगी।
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