नागार्जुन त्रिलोचन केदारनाथ सिंहशमशेर जैसे शीर्षस्थ कवियों की सोहबत में दिविक रमेश का कवि-कर्म फला-फूला है। लेकिन उन्होंने अपने ढंग से अपनी कविता यात्रा का विकास किया है।यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। उनकी कविताओं की भाषा सहज और संप्रेषणीय है। कवि ने अपनी भाषा-शैली का ठाठ खड़ा किया है जो आरोपित नहीं स्वाभाविक है। बोलचाल और स्थानीयता इस भाषा की बड़ी विशेषताएँ हैं। विगत शताब्दी के आठवें दशक से लेकर आज तक उनका सृजन-संसार निरंतर सक्रिय है। वरिष्ठ कवि दिविक रमेश की काव्य- साधना पर केदारनाथ अग्रवाल शमशेर बहादुर सिंह त्रिलोचन नागार्जुन केदारनाथ सिंह अशोक वाजपेयी मंगलेश डबराल जैसे महत्वपूर्ण कवियों से लेकर युवा कवि उमाशंकर चौधरी ने विचार किया है तो प्रो. नामवर सिंह प्रो. निर्मला जैन प्रो.विश्वनाथ त्रिपाठी प्रो. रामदरश मिश्र प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी प्रो. ए. अरविंदाक्षन डा. कमल किशोर गोयनका प्रो. अजय तिवारी प्रो.गोपेश्वर सिंह आदि प्रसिद्ध आलोचकों ने दिविक की कविताओं के वैशिष्ट्य को उद्घाटित किया है। इसी क्रम में कथाकार गंगा प्रसाद विमल अब्दुल बिस्मिल्लाह प्रणव कुमार बंद्योपाध्याय तरसेम गुजराल नाटककार प्रताप सहगल प्रकाश मनु व्यंग्य लेखक प्रेम जन्मेजय आदि ने भी इस कवि की कविताओं के गुणों को रेखांकित किया है। अत: स्पष्ट है दिविक की कविताओं को रचनाकारों तथा पाठकों ने पसंद किया है तथा इन्हें गम्भीरता से लिया है। :- अरुण होता
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