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About The Book
Description
Author
श्रीमद्भगवद्गीता के अतुलनीय महत्त्व के कारण विश्व की 75 विदेशी भाषाओं सहित लगभग 82 भाषाओं में इसका रूपांतरण हो चुका है तथा सहस्रों टीकाएँ इस पर लिखी जा चुकी हैं। तो फिर इस एक और टीका की आवश्यकता क्यों पड़ी? जिन-जिन विद्वानों के मन में त्रिगुणमयी प्रकृति के गुणों से जन्य जैसा भाव उनके अंतःकरण व बुद्धि में रहा उसके अनुरूप ही उन्होंने ‘गीता’ को अपने शब्दों में सँजोकर अपनी-अपनी कृतियों में उड़ेल दिया है। इसीलिए ‘गीता’ में भगवान् श्रीकृष्ण का एक निश्चित मत होते हुए भी भिन्न-भिन्न विद्वानों की कृतियों में नाना प्रकार से मतों की विभिन्नता दिखाई पड़ती है जो कि स्वाभाविक ही है। भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए उपदेशों में जो सारगर्भित निश्चित मत अंतर्निहित है उसी को स्वरूप देने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है। परमात्मा के दिव्य अमृत वचनों के रहस्य तो परमगुह्य अकथनीय विशद एवं अलौकिक हैं। प्रस्तुत कृति आधुनिक युग के मानव को शोक संत्रास अतृप्त तृष्णाओं के उद्वेगों से मुक्ति दिलाकर शाश्वत सच्चिदानंद परमात्मा के सायुज्य में लाने का एक विनम्र प्रयास है।.