गुरु’ वो है जो किसी भी व्यक्ति की चेतना को ईश्वर की परम चेतना से मिला देता है। गुरु दर्पण है जो शिष्य को उसकी वास्तविकता से परिचित कराता है। ईश्वर जीवन देता है तन देता है गुरु मन को गढ़ता है। गुरु के वचन ही मंत्र समान हैं और मोक्ष गुरु कृपा होने पर ही मिलती है। गुरुकृपा पाने के लिए भक्ति सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। भक्ति समर्पण से आती है। गुरु ईश्वर का स्वरूप है. जो जीवन में आपके दर्पण का काम करता है। सदगुरु जो स्वयं ब्रह्म है निराकर है निर्विकार है वही ब्रह्म जगत कल्याणार्थ के लिए मातृ भाव मे साकार हो कर पथ प्रदर्शित करता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण जी ने गुरु-शिष्य परम्परा को ‘परम्पराप्राप्तम योग’ बताया है। गुरु-शिष्य परम्परा का आधार सांसारिक ज्ञान से शुरू होता हैपरन्तु इसका चरमोत्कर्ष आध्यात्मिक शाश्वत आनंद की प्राप्ति है जिसे ईश्वर -प्राप्ति व मोक्ष प्राप्ति भी कहा जाता है। बड़े भाग्य से प्राप्त मानव जीवन का यही अंतिम व सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.