सचाई पर चलकर भी जब उसे पग-पग की ठोकरे खानी पड़ी तो उसकी आत्मा विद्रोही हो उठी परंतु हर ओर से दर्द अवहेलना तिरस्कार पाकर भी उसका व्यक्तित्व टूट नहीं सका। ऐसा था नारायण और ऐसी ही थी नीरू मगर नीरू अंत में टूटी बिखरी और नारायण। उसका क्या हुआ? बंगला के प्रतिष्ठित उपन्यासकार ताराशंकर बंधोपाध्याय का यह उपन्यास उत्कृष्ट रचना है| About the Author ताराशंकर वन्धोपाध्याय प्रसिद्ध बांग्ला साहित्यकार हैं। इन्हें गणदेवता के लिए 1966 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ताराशंकर बंधोपाध्याय को साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1969 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आरोग्य निकेतन के लिये उन्हें सन् 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया|
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.