साहित्य में हमें मदिरा के ऊपर तो बहुत कुछ लिखा हुआ नज़र आता है परंतु धूम्रपान के ऊपर कोई विशेष कार्य नहीं हुआ है। विश्व में करीब 100 करोड़ लोग सिगरेट फूँकते हैं और करीब 10 अरब सिगरेट रोज़ बिकती हैं। इतने व्यापक अस्तित्व के कारण धूम्रपान सिर्फ करने वालों तक सिमित नहीं है। धुआँ तो वैसे भी किसी में कोई फ़र्क नहीं करता। इसलिए ‘दो कश ज़िंदगी’ एक ऐसी कविता है जो सबसे जुड़ी है जिसका मुख्य किरदार एक धूम्रपान करने वाला है और कविता उसके जीवन को कई दृष्टिकोण से बखान करती है।
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