‘‘दो लोटा छाछ’’ की कहानियाँ यथार्थवादी और जमीन से जुड़ी कहानियाँ हैं। इनको पढ़ के ऐसा प्रतीत होता है कि कहानी के पात्र शायद आसपास ही हैं या हम में से कोई है। यह तेजतर्रार युवा पीढ़ी की कहानियाँ नहीं हैं बल्कि एक मध्यवर्गीय परिवारों की कहानियाँ हैं जो कहीं से भी काल्पनिक नहीं लगती और पाठक स्वयं को इससे जुड़ा हुआ महसूस करता है। अधिकतर कहानियाँ गाँवों और कस्बों की हैं मगर उसमें मानव की संवेदनाओं और उनके सुखदुःख का भलीभाँति चित्रण किया गया है।
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