Door Kshitij

About The Book

प्रकृति के गोद में बसा चिर स्मृतियों का गांव जो मन से कभी दूर न हो सका। धरती पर उषाकाल की अनवरत अनंत रश्मियां जब अपनी प्रकाश पुंज बिखेरतीं ये मन उड़ने लगता कल्पना के उस लोक में समेटकर बांहे पसारे मलय समीर केतकी चम्पा की मधुर सुगन्ध अम्बर में उड़ते पंछियों की कतारें कलकल करते झरने अठखेलियाँ करती बहती नदियां उफनते नाले हिचकोले खाती समंदर की लहरें। अपनी माटी की सोंधी महक में अभावों में पला बढ़ा बचपन रंगीन गुब्बारों में सिमटी समाहित तृप्ति और अभिलाषाएं क्षुधा त्राण के लिए शहरी कोलाहल की ओर प्रस्थान करते कदम विकास के लिए धरती को चीरती बुलडोजरों की आवाजें भयावहता में विनाश की बाट जोहती धरती और हरी भरी प्रकृति। आंचल समेटती सुन्दरी जो मन के दरवाजे पर पायल छनकाकर छोड़ जाती विरह की अधूरी दस्तक समय के साथ चलती विभीषिकाएं उनसे घबराया छटपटाया शांत चुपचाप अकेला आदमी अपनों से अपनो की दूरियां बनाकर अनमने रिश्तों में जीता आदमी बस इन्हीं कल्पनाओं को संजोकर एक गुलदस्ता सजाने का प्रयास भर है मेरा यह कविता संग्रह। वैसे तो छात्र जीवन से ही यदा कदा लिखने की शुरुआत हो गई थी कालेज की मैगजीन में स्थान मिलना पुरस्कार से कम नहीं लगता था। शनै शनै यही शौक अपने बैंक की आंचलिक पत्रिकाओं और रिजर्व बैंक राजभाषा प्रकोष्ठ की पत्रिकाओं में स्थान मिलता रहा। धीरे धीरे ये अनवरत यात्रा चल पड़ी संग्रह शतक पार कर गया सुधी पाठकों की प्रतिक्रियाओं ने संग्रह को लिपिबद्ध और क्रमबद्ध करके पुस्तक बनाने की प्रेरणा दी।
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