इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे पास कैसे अंग हैं हमारी टाँगों के बीच ये ‘प्राइवेट पार्ट्स’ अकसर हमारे मन में. . . कई भावनाएँ और सवाल पैदा करते हैं।क्या यह ठीक साइज़ का है? क्या यह बहुत बड़ा है? यह इतना काला क्यों है और इस पर इतने बाल क्यों हैं? बच्चे कैसे पैदा होते हैं? पीरियड्स के समय दर्द क्यों होता है?जैसा कि जॉन मेयर ने बहुत ख़ूबसूरती से गाया है 'योर बॉडी इज़ ए वंडरलैंड लेकिन कामसूत्र की धरती पर हम अकसर यही भूल जाते हैं। शब्द जैसे वजाइना क्लिटोरिस पीनिस और स्क्रोटम जैसे लोगों में उलझन और शर्मिंदगी पैदा करते हैं। शायद आप में भी प्रिय पाठक?हालाँकि बॉडी सबके पास होती है लेकिन कोई इसके बारे में बात नहीं करना चाहता। ख़ासतौर पर प्राइवेट अंगों का तो कोई नाम तक नहीं लेना चाहता। इतनी रोक-टोक शर्म के बीच हमारे पास ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ अपने शरीर के बारे में हम कुछ समझ और सीख सकें। अपने शरीर के साथ हमारा रिश्ता टेक्निकलर होने के बजाय एक बोरिंग ब्लैक एंड व्हाइट प्रोडक्ट बनकर रह जाता है।बस इसी जगह यह पुस्तक काम आती है―वैज्ञानिक मज़ेदार और आसानी से समझ में आनेवाली गाइड की तरह सबकुछ बताने वाली कि ‘अंदर क्या है’ या ‘बाहर क्या है’। आपकी चिंता चाहे जो भी हो डॉ. क्यूट्स आपको सब बताने के लिए हाज़िर है।
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