इस पुस्तक के अध्ययन से हमें यह ज्ञात होगा कि हम किसी भी साहित्यकार या विद्वान व्यक्ति के साहित्य या व्यक्तित्व पर किस प्रकार अपना शोध प्रबंध तैयार कर सकते हैं और रही पुस्तक की प्रेरणा की बात तो मुझे यह पुस्तक लिखकर प्रकाशित कराने की आवश्यकता इसलिये महसूस हुई क्योंकि वर्तमान में मैं पी.के. विश्वविद्यालय की शोध शाखा में शोध सहायक निर्देशक के पद पर कार्यरत हूँ और मैंने यह देखा है कि कई शोधार्थी जिनके शोध के शीर्षक किसी साहित्यकार के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित थे वो अपने-अपने शोधकार्य को किस प्रकार गति प्रदान करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचे। इसके लिए परेशान रहते थे और कई शोधार्थियों ने तो मुझसे इस संबंध में मदद भी चाही जिसके परिणामस्वरूप मैंने उन्हें कई साहित्यकारों के लेख पढ़ने को भी दिये व इस प्रकार के लेख उन्हें आसानी से कहाँ मिल सकते हैं यह भी बताकर उनकी मदद की। परन्तु इस विकट समस्या को मैंने अपने मन में महसूस करते हुए इसके समाधान हेतु इस पुस्तक को टाइप करा कर छपवाना साहित्य के प्रति अपना नैतिक कर्तव्य समझा कि कम से कम ‘नवीन शोधार्थी जिनका शोध का विषय किसी भी साहित्यकार के व्यक्तित्व और कृतित्व पर होगा या इससे संबंधित होगा तो उसके लिये यह पुस्तक रामबाण की तरह कार्य करेगी और शोधार्थी का शोध कार्य अपनी पूर्णता को प्राप्त हो सकेगा।शोधार्थी को अपने शोध कार्य में इस पुस्तक से थोड़ी-बहुत भी मदद मिल सकी तो मैं स्वयं पर माँ शारदे की अनुकंपा समझूँगा। इसके अलावा एक बात और है वह यह कि जैसा कि सभी को पता है प्रत्येक व्यक्ति का अपने जन्मस्थान व अपने शहर से लगाव होता है और इसी स्वार्थ के चलते मैंने अपने शहर के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं मेरे परम गुरु डॉ0 परशुराम शुक्ल ‘विरही’ जी के समग्र साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने का एक छोटा सा प्रयास किया है।
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