आचार्य चतुरसेन जी साहित्य की किसी एक विशिष्ट विधा तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने किशोरावस्था में कहानी और गीतिकाव्य लिखना शुरू किया बाद में उनका साहित्य-क्षितिज फैला और वे जीवनी संस्मरण इतिहास उपन्यास नाटक तथा धार्मिक विषयों पर लिखने लगे। शास्त्रीजी साहित्यकार ही नहीं बल्कि एक कुशल चिकित्सक भी थे। वैद्य होने पर भी उनकी साहित्य-सर्जन में गहरी रुचि थी। उन्होंने राजनीति धर्मशास्त्र समाजशास्त्र इतिहास और युगबोध जैसे विभिन्न विषयों पर लिखा। ‘वैशाली की नगरवधू’ ‘वयं रक्षाम’ और ‘सोमनाथ’ ‘गोली’ ‘सोना और खून’ (चार खंड) ‘रक्त की प्यास’ ‘हृदय की प्यास’ ‘अमर अभिलाषा’ ‘नरमेघ’ ‘अपराजिता’ ‘धर्मपुत्र’ पत्थर युग के दो बुत दुखवा मैं कासे कहुं और पूर्णाहुति सबसे ज्यादा चर्चित कृतियाँ हैं। About the Author आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त 1891 को भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले के एक छोटे से गाँव औरंगाबाद चंडोक (अनूपशहर के पास) में हुआ था। उनके पिता पंडित केवाल राम ठाकुर थे और माता नन्हीं देवी थीं। उनका जन्म का नाम चतुर्भुज था। अपनी प्राथमिक शिक्षा समाप्त करने के बाद उन्होंने राजस्थान के जयपुर के संस्कृत कॉलेज में दाखिला लिया जहाँ से उन्होंने वर्ष 1915 में आयुर्वेद और शास्त्री में आयुर्वेद की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने आयुर्वेद विद्यापीठ से आयुर्वेदाचार्य की उपाधि भी प्राप्त की।
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