Dumchhalla दुमछल्ला

About The Book

about the book जब इंसान अंदर से टूटता है तो वो अपनी बात समझाने के तरीके ढूँढने लगता है । और जब अंदर भावनाओं का ज्वार उठ रहा हो और सुनने वाला कोई न हो तो वो खुद के लिए फैसलें लेता है । बेशक वो समाज की मान्यताओं में सही न हो लेकिन वो फिर भी अपने हक़ में फैसलें लेता है । यह कहानी है जागी आँखों से देखें जाने वाले सपनों की उन अहसासों की जिन्हें हम जीना चाहते हैं लेकिन जी नहीं पाते । उन अहसासों की जो जन्म तो लेते हैं लेकिन कुछ समय बाद सिकुड़ जातें हैं । यह कहानी है भावनाओं से भरे 6 लोगों की जिनमें प्यार विश्वास अपनापन तो है लेकिन एक-दूसरे को आज़ादी देने की हिम्मत नहीं है । किसी की एक गलती उन सभी की जिंदगी को उस मोड़ तक ले जाती है जहाँ से कुछ भी ठीक कर पाना न नहीं था । दखल किसने किसकी जिंदगी में दिया था कह पाना मुश्किल है । नादानी नासमझी या अपरिपक्वता चाहे जो भी नाम दें लेकिन सवाल तो बस आज़ादी से ही जुड़ा था ।
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