Dur Kahi tu chal

About The Book

उसे जिसने बिछड़ जाना उचित समझा“ यह प्रचलित अर्थ में कोई काव्य संग्रह नहीं है यह तो अपने मन और ह्रदय से किया हुआ एक संवाद है जिसे गद्य पद्य मिश्रित स्वरुप में आपके सामने प्रस्तुत किया है तड़पते हुए मन की बाते शब्दों में व्यक्त हो गयी है क्योंकी यह सब कहने के लिए वह मेरे सामने रूबरू फिर आयी ही नहीं है. हर जख्म वक्त के साथ भरते नहीं. शायद दुनिया का सबसे बड़ा गुनाह किसीको अपने जान से भी ज्यादा चाहना उससे मोहब्बत करना उसकी कई कई दिन तक राह देखनाउसके दिदार के लिए तड़पना कितने सारे गुनाह एक चाहत पैदा कर देती है. कई बार किसीसे एक लम्हे के लिये भी उसका हाल पूछ लो ना तो उसका पूरा दिन खुशी ख़ुशी गुजरता है क्योंकि आपकी आवाज़ सुनने के लिए वह न जाने कितने शिद्दत से कितनी राते तड़पा होगा न जाने कितने रात और दिन मन ही मन तुम्हे याद करके रोया होगा बैचेनी के हाल में खुद को भी खो बैठा होगा खुली आँखों में भी बस तुम्हारे ख्वाब देखता होगा एक ही तो गुनाह वह कर देता है हद से ज्यादा तुम्हे चाहता है.
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