यह संकलन स्त्री-मुक्ति प्रश्न के विविध महत्वपूर्ण और गौण वैचारिक-सामाजिक-सांस्कृतिक पक्षों पर एक तर्कसम्मत अवस्थिति प्रस्तुत करता है जिसके पीछे एक सुनिश्चित इतिहास-बोध भी है और एक संवेदनशील कवि का अहसास भी। स्त्री-जीवन की त्रासदियों-यंत्रणाओं के सान्द्र-सघन अहसास की काव्यात्मक अभिव्यक्तियों तक ही सीमित न रहते हुए कात्यायनी ने स्त्री-मुक्ति की दिशा और स्वरूप के व्यावहारिक प्रश्न को भी उठाया है और अपना स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। हिन्दी की प्रतिष्ठित कवयित्री और सांस्कृतिक कर्मी कात्यायनी स्त्री-प्रश्न के विविध पक्षों पर जारी बहसों में ही नहीं बल्कि स्त्रियों को संगठित करने और आन्दोलन की व्यावहारिक कार्रवाइयों में भी एक लम्बे अरसे से लगातार शिरकत करती रही हैं। इस संकलन में स्त्री मुक्ति आन्दोलन के इतिहास और उसके बुनियादी सवाल भूमण्डलीकरण के दौर में स्त्री साहित्य और पत्रकारिता में स्त्री के विषयों से जुड़े 16 लेख और टिप्पणियाँ हैं जो स्त्री के अन्तर्जगत और बहिर्जगत और स्त्री के मुक्ति-प्रसंग के विविध पहलुओं की पड़ताल करते हैं।
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