यह मेरी यात्रा है। अनवरत तलाश है। कब मिलेगी नहीं मालूम। इस तलाश में आप सभी सुधी पाठकों को भी शामिल करने का प्रयास किया है क्योंकि यात्रा तो सभी कर रहे हैं और सभी अपने अपने लक्ष्य के तलाश में ही है। इसलिए सभी सहयात्रियों का अभिनंदन करता हूँ। अर्न्तुमखी संकोचशील स्वभाव के कारण एवं उपहास के भय से सार्वजनिक काव्य मंचों पर जाने का साहस नहीं जुटा सका। किन्तु कुछ मित्रों के दबाब के आगे झुकना पड़ा और प्रकाशित कराने का मन बनाया। वैसे लिखा तो जाता ही है स्वयं को पुनः पढ़ने के लिए या दूसरों के पढ़ने के लिए और लिखने की समस्त सामग्री तो सीख और समझ के रूप में इसी समाज से प्राप्त होती है। जो व्यक्ति के पास समाज कि धरोहर होती है उसे सूद समेत समाज को लौटा देना हर मनुष्य का कर्तव्य है। इस दृष्टिकोण से भी इस काव्य संग्रह का प्रकाशन आवश्यक था। अब समाज के सुधी पाठकों को तय करना है कि मैं कितना सफल हुआ।
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