*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹128
₹156
17% OFF
Paperback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
आज का समाज विसंगतियों से भरा हुआ है। व्यवस्था और तंत्र एक क्षद्म रचे हुए है। यथार्थ कुछ और है प्रचार कुछ और है। इन सब पर जब दृष्टिपात किया जाए; तो कभी गुदगुदी सी होती है और कभी पीड़ा होती है। हमारा सामाजिक तानाबाना छिन्न- भिन्न है। समाज और व्यवस्था के तमाम छोटे-बड़े मसलों पर इस संग्रह में कहीं हास्य उत्पन्न करने की कोशिश है तो कहीं संवेदना । यह संग्रह पढ़ते समय आप अपने आप को कई जगह आस-पास महसूस करेंगे कभी अतीत के अनुभवों से किसी व्यंग्य से जुड़ेंगे और कभी इस संग्रह के किसी व्यंग्य को भविष्य की किसी घटना या अनुभव से जोड़ेंगे और संदर्भित करेंगे।