एक चिथड़ा सुख सुख की चाह लिये चलते हुए लोगों की कहानी है—सुख को जीतने के लिए भागते-दौड़ते लोगों की नहीं। इस उपन्यास के पात्र जो किसी-न-किसी तरह कहीं से उखड़े हुए हैं कोई हताशा जिनके भीतर बिंधी है अपने जीवन को कोई अर्थ देना चाहते हैं अपने-आपको पा लेना चाहते हैं पूरा होना चाहते हैं ये लोग हमारी उस दुनिया का एक ज़्यादा उजला प्रति-संसार रचते हैं जहाँ हर कोई ख़ुद को पूरा मानते हुए जीवन को तलाश की तरह नहीं युद्ध की तरह शुरू करते हैं। निर्मल वर्मा के लेखन में उतरते ही जो सुख हमें अपने पास खींच लेता है उसका उत्स इसी जगह है; कि वह सुस्पष्ट-सुव्यवस्थित उपलब्धि की हमारी दुनिया के मामूलीपन का विस्तार नहीं है उसका विपर्यय है। वह एक आईने की तरह हमारे सामने आता है जिसमें हम अपनी छूँछी कुंठाओं के उथलेपन को देख पाते हैं उनसे मुक्त हो जाते हैं। ‘एक चिथड़ा सुख’ के पात्र अपनी अपूर्णताओं में यह और बेहतर ढंग से कर पाते हैं। दिल्ली इस उपन्यास का भूगोल है। यहाँ वह भी एक पात्र की तरह दिखाई देती है और अपने इन अति संवेदनशील रहवासियों को अपनी पृष्ठभूमि में और साफ़ वेध्य दिखा पाती है।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.