Ek Safar Mein

About The Book

जब कोई व्यक्ति नींद में सपने देखता है तो ना जाने कितने सारे कैरेक्टर्स एक साथ दिखाई पड़ते हैं बिल्कुल वैसा ही जैसे हम सिनेमाघरों में मूवी देखते हैं। लेकिन क्या कभी वास्तव में वैसा होता है जैसा कि सोते वक्त हम सपने में देखते हैं? एक लेखक अपने विचार से काफी कुछ सोच कर लिखता है जो आजकल मनोरंजन के तौर पर देखा या पढ़ा जाता है। कभी-कभी वास्तविकता कुछ और भी होती है किन्तु जब सच में घटित काल को लोगों के सामने पेश किया जाए तो यह एक संदर्भ में समाज को आईना दिखाता है जिसके द्वारा बहुत कुछ अनुभव किया जा सकता है। इस किताब “एक सफर में” में लेखक ने अपने जीवन के सभी घटकों को प्रदर्शित करने का प्रयास किया है जिससे लोगों को इस संदर्भ में ज्ञात होगा कि वास्तविक दैनिक दिनचर्या में कलाकारों या अन्य किसी भी व्यक्ति को किन किन परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ता है और उसके द्वारा किए गए प्रयास से क्या परिणाम निकलते हैं। इस किताब से लेखक यह बताना चाहते है कि आजकल जो हम लोगों को कुछ करते हुए देखते हैं वह केवल एक फॉर्मेलिटी (प्रचलित नियम) जैसा बन गया है जबकि लोगों के विचार एक दूसरे से काफी भिन्न होते हैं। “एक सफर में” इस पुस्तक में मुंबई फिल्म उद्योग तथा आम कलाकारों के जीवन पर आधारित कई मुद्दों पर लेखक ने अपने तीन साल के अनुभव को दर्शाया है ताकि छोटे शहरों से आने वाले कलाकारों को मुंबई (मायानगरी) जैसे शहर की वास्तविकता और समस्याओं से अवगत करा सकें।
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