संजय कुमार श्रीवास्तव की कविताएं और गजलें आपको एक ऐसी रोमानी दुनिया में ले जाती हैं जहां इश्क़ आपको अपनी ख़ुशबू और खूबसूरती में लपेट लेता है आप में यूं जज़्ब हो जाता है कि पूरी कायनात में आप ही आप होते हैं।इनकी कविताओं और गजलों में प्रेमियों की विवशता नहीं है। बल्कि बेहद बागी तेवर हैं जहां ख़ुदा के प्रति आक्रोश भी है और उससे शिक़ाायतें भी। नाराजगी भी इतनी कि ये गजलें ख़ुदा के होने को नकारती भी हैं और मजहब और ध्र्म को आड़े हाथों लेती हैं।इनकी कविताओं में टूटते रिश्तों की तल्ख़ी भी है और दोस्तों का जिक्र भी।ये कविताएं किसी वायलिन की हौले से बजती किसी ध्ुन की तरह आप को किसी और जहां में ले जाते हैं।
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