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About The Book
Description
Author
चलते-चलते पाँव का किसी लम्हे पर ठिठकना किसी कण्ठ में उठते हाहाकार अश्रुओं की चटकन रात के किसी अबूझे पहर में धप्पा मारकर भागते स्वप्न और.... अतीत की श्वेत-श्याम पगडण्डी पर न जाने कितनी बैचनियाँ दौड़ती मिलीं? जब भी मैं आईने के सामने आती वह अपनी टकटकी से एक सुईं-सी चुभो जाती तब मन घायल हो जाता फिर कुछ आधी अधूरी कहानियाँ जो डायरी में घुट रही थीं उन्हें उनके हिस्से के पँख तो देने ही थे और.... किसी का देय जो पीछा करता ही जा रहा था! ये सभी कहानियाँ उन्हीं से मुक्ति का स्वर हैं... - ऋतु त्यागी