कहानियां जैसा मैं समझती हूं हमारी-आपकी इनकी-उनकी जिंदगी के अलग-अलग रंगों का अंकन होती हैं। ये कहीं अलग से नहीं आतीं। ये तो हमारे आपके बीच से ही पनपती हैं। सच तो यह है कि हर व्यक्ति अपने आप में जाने कितनी कहानियां समेटे होता है। इन्हें हम देखते हैं सुनते हैं समझते हैं और साझा भी करते हैं। इसी प्रक्रिया में जब कोई इन्हें महसूस करके यथार्थ और कल्पना के धागे में पिरो भावनाओं-संवेदनाओं के रंगों से सजा कर कलमबद्ध करता है तो जन्म होता है एक कहानी का। यहां यह कहना चाहूंगी कि यह सायास नहीं होता है यह तो अनायास ही होता है।... डॉ. कविता श्रीवास्तव
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