Ekta Ke Devdoot : Shankaracharya

About The Book

अद्वैत वेदान्त के सबसे प्रमुख प्रतिपादक आदि शंकराचार्य एक मनीषी वैदिक धर्मशास्त्री और दार्शनिक थे। उनके द्वारा प्रचारित अद्वैत वेदान्त के सिद्धान्तों पर आधुनिक हिन्दु विचार मुख्यता आधारित है। उपनिषदों भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र पर उनके भाष्य प्रकरण ग्रंथ और स्तोत्र अद्वैत वेदान्त परम्परा में अमूल्य योगदान हैं। इसी परम्परा को बनाये रखने के लिए उन्होंने देश में चार मठों मंदिरों और शक्तिपीठों की स्थापना की। 786 ईसवीं में केरल में कालडी नामक स्थान पर इनका जन्म हुआ। छोटी उम्र में ही उन्होंने संन्यास ले लिया और अपने जीवन के पूरे 32 साल समाज व धर्म में नव जागरण और जन कल्याण के कार्यों में समर्पित कर दिया। आदि शंकराचार्य के जीवन पर आधारित कई जीवनियाँ उपलब्ध हैं लेकिन अधिकांश उनकी मृत्यु के 300 वर्ष उपरान्त लिखी गईं और बहुत प्रमाणिक नहीं मानी जातीं। डॉ. दशरथ ओझा ने दिल्ली विश्वविद्यालय में 1948 से 1977 तक हिन्दी पढ़ाते रहे वर्षों तक शंकराचार्य के जीवन पर शोध किया और महात्माओं इतिहासकार और लेखकों से प्रमाणिक जानकारी एकत्रित करने के बाद यह पुस्तक लिखी। हिन्दी और संस्कृत में पीएच.डी. की उपाधि पाने वाले डॉ. ओझा का कहना है मानव कल्याण के लिए आचार्य शंकर ने किस प्रकार वैदिक बौद्ध जैन शाक्य कापालिक आदि अनेक मत-मतान्तरों का जिस प्रकार पुररुद्धार किया उसकी झाँकी तत्कालीन इतिहास के परिप्रेक्ष्य में दिखाने का प्रयास है इस पुस्तक में।
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