श्री दुर्गा सप्तशती काव्यानुवाद की प्रेरणा- आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जी ने ‘रामायण’ ग्रन्थ की रचना देव-भाषा संस्कृत में की जो स्वयं में एक महान उपलब्धि रही। विद्वत मण्डल में इसकी बहुत सराहना हुई परन्तु सामान्य जन जिन्हें संस्कृत का पर्याप्त ज्ञान नहीं है ऐसे लोग इसके लाभ से वंचित रहे। महाकवि तुलसीदास जी ने इस पीड़ा को समझा और क्षेत्रीय बोलचाल की भाषा अवधी में भगवान श्री राम के आद्योपांत चरित्र का गुणगान ‘रामचरित मानस’ रचना के रूप में सफलतापूर्वक किया परिणामत: ‘रामचरित मानस’ ने घर-घर में अपनी पैठ बना ली। इसी भाव से प्रेरित होकर श्री दुर्गा सप्तशती का विस्तृत काव्यानुवाद करने का संकल्प मन में आया। जो प्रबुद्ध भक्त जन संस्कृत में श्री दुर्गा सप्तशती पाठ नहीं कर पाते उनकी सरलता के लिए काव्यानुवाद दुर्गा सप्तशती सामान्य जन तक पहुंचे ऐसा प्रयास किया गया है। आशा है कि इस प्रयास से भगवती भक्तों को समग्र रूप से माँ के यशोगान का पर्याप्त लाभ मिलेगा। कवच अर्गला तथा कीलक के साथ-साथ तेरह अध्याय तीनों रहस्य (प्राधानिक वैकृतिक एवम् मूर्ति) क्षमा प्रार्थना स्तोत्र आदि का काव्यानुवाद किया गया है। पुस्तक में अन्य विषयगत जानकारियों को भी स्थान दिया गया है। माँ की कृपा से प्रयास को पूर्णता मिली और काव्यानुवाद एक पुस्तक के रूप में जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प पूरा हो सका।
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