हम सफर की बात करें तो निकलती है बहुत सी कहानियां निकलते हैं बहुत से सवाल निकलते हैं बहुत से नजरिए अगर हम ध्यान से सफर की बात करें तो हमें पता चलता है की क्या क्या होता है सफर में तो सफर में शुरुआत होती है सफर में गति होती है तो हम ध्यान से सोचे तो शुरुआत जन्म सी होती है तो मंजिल अंत सी होगी। मौत सी होगी तो पूरा जीवन एक सफ़र में क्या हम जी सकते है ? और क्या क्या होता है सफ़र में उसकी बात करे तो नज़र होती है नज़रिया होता है सवाल उठते है जवाब मिलते है मीसम बदलते है और हम भी बदलते है नया नजरिया मिलता है नवा दृश्य भी मिलता है कुछ महसूस होता है तो मजा आता है फिर ये सब मिलाकर हम अपनी कहानी किसी और को कहे तो और भी ज्यादा मज़ा आता है मैंने छोटे छोटे सफ़र तय किए है ये उसका विस्तार है और कुछ नया देखकर चौक उठना स्वाभाविक है।गुढ़ता और सरलता में भेद करना मुश्किल नहीं होता पर सरलता और साम्य में भेद करना मुश्किल होता है। जब कुछ जी लेने के बाद आपको कुछ कहने का मन करे की ऐसा क्यों है? तब आप पहले कदम पर होते हो कुछ नए की शोध के लिए ये आपके लिए खास होता है फिर होता है की मुझे तो पता चल गया अब क्या ? तब आप देखते हो आप जैसे दूसरे मुसाफिर को उस की और हाथ बढ़ाना बहुत ही स्वाभाविक हो जाता है की कुछ बात की जाए तो कभी कभी जब आम तरीके से कहने पर बात लोगों को नहीं आती थी रास तो चलो करते है हम कुछ आगाज़ इसे बोलने पर वो रुचि बढ़ाने लगा सुनने में तो कहने लगे कुछ लोग कुछ अंदाज़ में की क्या !!! अंदाज है।तब रुचि बढ़ने पर बढ़ने लगी रुचि लिखने में और लिखते लिखते कुछ लिखा जो था अंदाज़ में। है ये किताब जो बताती है मेरा अंदाज़ की पढ़ पाओगे आप मेरी लिखी कुछ बात जो कर दे आपको मजबूर सोचने को कुछ या दे कुछ करने को महसूस।
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