फ़ारिगी हिंदी कविताओं और उर्दू शायरी का एक संग्रह है जो की डॉ विजय शंकर द्वारा लिखीं गयीं हैं। फ़ारिग उनका तख़ल्लुस है और इस ही नाम से वो अपनी रचनाओं को कागज़ पर उतारा करते थे। उनके लिए लिखना रोज़ मर्रा की बात थी यही और उनका एक खास वस्ल भी था। हमनें २००९ में उनके चले जाने के बाद उनकी कई डायरियों का पुरज़ोर अध्ययन किया। यह डायरियाँ उनके पूर्ण जीवन काल भर में लिखीं गयीं कविताओं और शायरी का खज़ाना था जिन्हें एक किताब की शक्ल दी गयी है। उनकी शायरी में ज़िक्र है कई ऐसे ख़यालों का जो उनके जीवन के तजुर्बे की झलक भी देते हैं और उनकी शख्सियत की परिभाषा भी बताते हैं। उनकी शायरी में बखान है खुदा और इश्क़ का। मगर वो चीज़ जो उन्हें बाकी शायरों से जुदा करती है वो है उनकी वो रचनाएं जो विज्ञान और पर्यावरण के कुछ अनछुए मगर महत्वपूर्ण पहलू जिन्हें पढ़ कर शायद ज़माने को एहसास हो कि उन छोटी छोटी चीजों में क्या खूबसूरती विराजमान है। चाहे फिर वो शरीर के खून के प्रवाह का तरीका हो या डीएनए के बनने की सामग्री का बखान हो। कुछ बेहद नए और हैरान कर देने वाले वैज्ञानिक शाखाओं पर रोशनी डालती है उनकी शायरी। और उनकी किताब का एक बहुत बड़ा हिस्सा गंगा को भी प्रकाशित करता है। गंगा के लिए उनका प्रेम असीम था। और उनकी कई कविताएं और शायरी गंगा के इर्द गिर्द टहलती हैं। अगर आपने गंगा स्नान किया है तो शायद उनके लफ़्ज़ आपको एक सिहरन से नवाज़ दें। फ़ारिग साहब के व्यक्तित्व को अपने लफ़्ज़ों में बता पाना सूरज को दीप दिखाने के तुलनीय है। इसलिए इस किताब का होना बहुत महत्वपुर्ण है क्योंकि फ़ारिग साहब के लफ़्ज़ों से ज़्यादा बेहतर उनके बारे में कोई नहीं बता सकता।.
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