“वैसे तो मुझे मेरे नाम की ज़रूरत ही क्या है लोग-बाग मुझे तेरे नाम से भी जानते हैं” --- उसने कहा - तो आप लिखते हैं! इतना कुछ लिखते हैं तो शायद एक ठौर रखने के लिए डायरी होगी। डायरी में लिखते होंगे? है न? --- मैंने मुस्कुराते हुए कहा - हाँ डायरी है। डायरी में भी लिखते हैं। पर अब हम कम्प्यूटर में मोबाइल फ़ोन में नोट्स पर पन्नों में दीवारों पर कभी-कभी इंसानों पर भी लिखते हैं। और जो कुछ भी लिखते हैं दिल से लिखते हैं और दिल से लगाकर रखते हैं। -- नीरज भास्कर
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