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About The Book
Description
Author
एक बहुत ही ख़ौफ़नाक दंगे का मंज़र उपन्यास में आया है और हिन्दू- मुस्लिम दोनों इस दंगे में बेरहमी से एक दूसरे का क़त्ल करते हैं मज़हब के नाम पर धर्म के नाम पर राम के नाम पर अल्लाह के नाम पर और इस दंगे को हवा देते हैं सफ़ेद पोश राजनेता. पूरे दंगे में क़त्ल बलात्कार लूट आगजनी क्या कुछ नहीं होता है और अली व बजरंग बली के नाम पर सब कुछ तहत- नहस कर दिया जाता है. पूरे बीस दिनों तक शहर की फ़ज़ा में ज़हर सड़ांध और बजबजाती नफ़रत उठती रही थी और पुलिस प्रशासन मूक बना रहा और पुलिस वही कर रही थी जैसा हुक्मरानों का हुक्म था. हिन्दू बहुल इलाक़े में पुलिस पूरे लाव- लश्कर के साथ गश्त लगाती थी. मगर मुस्लिम बहुल इलाक़े में नहीं. इस साम्प्रदायिक दंगे के पसेमंज़र में एक ख़ूबसूरत प्रेम कथा भी चल रही है. नायिका शायरा है और हिन्दू है. वह एक मुस्लिम से विवाहित है. लेकिन कुछ ही दिनों में वह उससे अलग हो जाती है क्योंकि उसका शौहर मज़हब व रवायत को लेकर बहुत ही कट्टर है और विचारों में आज़ादी का हिमायती नहीं है. नायिका अपने शौहर से अलग होकर नायक से जुड़ती है और मुहब्बत कर बैठती है. यह बात उसके शौहर को नगंवारा गुज़रती है क्योंकि वे दोनों क़ानूनन तलाक़शुदा नहीं हैं. कहानी में इसको लेकर कई ट्विस्ट व टर्न है. नायक एक सफ़ल आदमी है और उसके साथ उसके बचपन का दोस्त अनवर काम करता है जो बहुत ही सेक्युलर है और खुले विचार का है. वह एक हिन्दू लड़की से शादी करता है. नायक भी बहुत सेक्युलर है. साथ में एक सह नायिका भी पूरे उपन्यास में लगातार बनी हुई है जिसके माध्यम से जिस्मानी रिश्ते आनवेड मदरहुड को लेकर कई सवालात खड़े किए गए हैं. उपन्यास में दो क़ौम के दरमियाँ फ़ासले मुहब्बत में फ़ासले को दिखाया गया है और यही है फ़ासले- दर- फ़ासले.