Fir Se Shoonya

About The Book

एक आम मनुष्य समाज के अपेक्षित वर्ग में अवश्य आता है परंतु खुशियों में झूमता भी वही अधिक है। त्रासदियों में सबसे पहले टूटता भी आम मनुष्य है और उनसे सबसे प्रथम उभरता भी वही है। कह सकते हैं आम मनुष्य का जीवन शून्य से परस्पर जुड़ा हुआ रहता है। जो उसे कभी अंत कभी आगाज़ का अनुभव कराता है। शून्यता पुर्नावृति का माध्यम है इसीलिए कोई सफर शुरू से अंत नहीं होता बल्कि शून्य से शून्य ही होता है। शून्य संभावनाओं की अस्थि नहीं बल्कि शून्य संभावनाओं की पृथ्वी है जो किसी भी रूप और प्रकार के सृजन को तत्पर और विकसित होती रहती है।
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