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About The Book
Description
Author
कभी-कभी जैसा हम चाहते हैं जिन्दगी वैसा ही हमें परोसती नहीं लेकिन फिर भी उसे खूबसूरत बनाया जा सकता है किसी को खयालों में उतारकर तो किसी के खयालों में उतरकर. झाँकिये साँझ की आँखों में इक्कीस साल की एक जिन्दादिल लड़की अकेलेपन के एहसास ने जिसे जान देने की कगार पर ला छोड़ा. परखिये रुद्र के डर को तेईस साल का एक हँसता- मुस्कुराता लड़का जो जी भर के रोना चाहता है. समझिये उस मौके को जो हमें तब दिया जाता है जब लगता है कि और अब कुछ भी बाकी न रहा. खूबसूरती से पिरोये गये आठ नज्म आठ उलझे से सवाल जिनके सुलझे-सुलझे जवाब दो अजनबी एक चुप-चुप सा गाँव और वो ना भुलाये जाने वाले बयालीस दिनों से सजी एक कहानी जो आपको रोने मुस्कुराने और फिर से जी जाने को मजबूर करती है.