देवव्रत से भीष्म बनने की कथा असाधारण है। राष्ट्रहित में प्रतिज्ञाओं का महोत्सव होता है पिता के आनंद हेतु पुत्र के जीवन सुखों का हवन होता है। वास्तव में गंगा पुत्र का जीवन तो देवव्रत से भीष्म बनने तक ही है बाकी जीवन काल तो केवल उनकी विवशता है। आजीवन प्रतिज्ञाओं की डोर पकड़े स्वयं को अपनी इच्छा अनुसार हस्तिनापुर को समर्पित कर देने वाला यह योद्धा अपने जीवन में केवल और केवल देना ही सीखा है। भगवान परशुराम का शिष्य उस कालखंड का अपराजेय योद्धा देवगुरु बृहस्पति एवं ब्रह्मर्षि वशिष्ठ का शिष्य नीति का ऐसा प्रकांड विद्वान जिसने विदुर जैसे ज्ञानी को दीक्षित किया। यह खण्ड काव्य देवव्रत से भीष्म बनने की कहानी है।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.