प्रो. अशोक चक्रधर हिंदी मंच के शीर्षस्थ कवि हैं। बहुमुखी प्रतिभा और धुन के धनी चक्रधर ने न केवल कवि के रूप में बल्कि फ़िल्म-धारावाहिक लेखक कवि- गीतकार नाटककार कलाकार निर्देशक अभिनेता और व्यंग्यकार के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। कविता और नाटक की ओर बचपन से ही उनका रुझान रहा। अपने कवि पिता श्री राधेश्याम ‘प्रगल्भ’ और उनके कवि-मित्रों की छत्रछाया में चक्रधर जी के अंदर कविता की बेली फूटी और जल्द ही पल्लवित-पुष्पित होने लगी। एक कवि के रूप में पहली बार 1962 में उन्होंने मंच से कविता पढ़ी। उस कविसम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे पं. सोहन लाल द्विवेदी ने कविता से प्रभावित होकर उनका नाम लाल किला कविसम्मेलन के लिए पं. गोपाल प्रसाद व्यास को सुझा दिया। अपनी लगभग छः दशक की कविता-यात्रा के दौरान चक्रधर जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे नित नई रचनाओं के साथ कामयाबी की राह पर आगे बढ़ते रहे। कविता की वाचिक परंपरा के विकास में उनका योगदान अप्रतिम है। तीन दशक तक उन्होंने जामिआ मिल्लिया इस्लामिया के हिंदी विभाग में अध्यापन किया मीडिया अध्ययन को अपने विभाग से जोड़ा और अनेक वर्ष तक विभागाध्यक्ष रहे। हिंदी कम्प्यूटिंग के क्षेत्र में उनका योगदान एक भिन्न फलक है जिसे काफ़ी सराहा गया। प्रो. चक्रधर ने देश और दुनिया के अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों को मार्गदर्शन दिया। केंद्रीय हिंदी संस्थान तथा हिंदी अकादमी दिल्ली के उपाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी उन्होंने निष्ठा और सक्रियता के साथ निभाई। देश-विदेश में उन्हें शताधिक सम्मान मिल चुके हैं। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत गुणों के लिए वर्ष 2014 में उन्हें पद्मश्री से विभूषित किया गया।.
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