“यह लड़ाई मेवाड़ के जन-जन ने लड़ी है संपूर्ण भारतीय जनमानस की सद्भावनायेँ इसमें सहायक हुई हैं और घास की रोटी हमारा सबसे बड़ा सम्बल और साधन हुई है।....... वास्तव में घास की रोटी ही स्वतंत्रता की साधना का प्रतीक बन चुकी है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि जो घास की रोटी खाकर भी अपनी स्वतंत्रता की साधना में रत रहने को प्रस्तुत हो संसार में वही अपनी स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। स्वतंत्र रहने के लिए सबसे पहले अपनी विलास वासनाओं से और अपनी दैनिक आवश्यकताओं से भी स्वतंत्रता प्राप्त करना आवश्यक होती है।“- इसी पुस्तक से
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