प्रियपाठकोशब्दों की अधिष्ठात्री देवीमां सरस्वती के आशीर्वाद एवं श्री सिद्धिविनायक गणपति के श्री पावन चरणों की चरनरज के रूप में मिली अनुकम्पा के कारणमेरे पूर्वजोंपरम पूजनीय मेरे माता पिताप्रातः स्मरणीय गुरुजनों एवं समस्त वरिष्ठजनों के शुभाशीष मेरे सहकर्मी एवं मित्रों की स्नेहमयी प्रेरणा सेविविध रस रंगों से ओत प्रोत काव्य रचनाओं से परिपूर्ण इस पुस्तक कोआपके समक्ष प्रस्तुत करने का मेरा अत्यंत दुर्लभ सपना साकार हो सका है।इसके लिए मैं योग योगेश्वरयशोदानंदनप्रेम के साक्षात प्रतिरूप भगवान श्रीकृष्ण की दैवीय कृपा का कृपापात्र बनकर अपने जीवन को धन्य महसूस कर रहा हूं। इस सपने को मूर्ति रूप देने में संकल्प प्रकाशन का जो सहयोग मिला है उसके लिए प्रकाशन का तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूं। एक बात मैं बड़ी विनम्रता से कहना चाहता हूं कि मैं एक कुशल लेखक तो नहीं लेकिन यह अवसर रूपी दैवीय प्रसाद मुझे कोरोना महामारी जैसी वैश्विक आपदा के समय खालीपन को भरने की प्रेरणा के रूप में मिला। एक शिक्षक होते हुए मैं विशेष रूप से भारत की गुरु शिष्य परम्परा से भलीभांति अवगत हूं। गुरु जीवनपर्यंत अपने शिष्यों को और शिष्य अपने गुरु को नहीं भुला पाता।इस श्रेष्ठतम रिश्ते को लेकर एक शिक्षक के अपने छात्रों के प्रति भावों को एक रचना के माध्यम से व्यक्त करने का भी प्रयास किया गया है। इन रचनाओं में हिंदी काव्य साहित्य की शुद्धता एवं गरिमा को बनाए रखने का पूर्ण प्रयत्न किया गया है और पाठकों की अभिरुचि में विविधता को ध्यान में रखते हुएहिंदी काव्य के विविध रसों का समागम करने का भी प्रयास किया गया है।
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