किताब के बारे मेंहिंदू पौराणिक कथाओं में घोर कलियुग गहन अंधकार और नैतिक पतन की अवधि को संदर्भित करता है जिसे दुनिया के चार युगों में से अंतिम के रूप में जाना जाता है। यह पुस्तक इस युग की जड़ों में गहराई से उतरती है हिंदू दर्शन के भीतर इसके ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व की खोज करती है। यह जांच करता है कि घोर कलियुग के लक्षण - धार्मिकता आध्यात्मिकता और नैतिक मूल्यों की घोर अनुपस्थिति भ्रष्टाचार हिंसा और बड़े पैमाने पर भौतिकवाद से ग्रस्त हमारे समाज के सामने आने वाली समकालीन चुनौतियों को कैसे दर्शाते हैं।पुस्तक का उद्देश्य पाठकों को यह अंतर्दृष्टि प्रदान करना है कि घोर कलियुग की अवधारणा वर्तमान वैश्विक मुद्दों और व्यक्तिगत संघर्षों के साथ कैसे प्रतिध्वनित होती है। यह ऐसे समय में रहने के प्रभाव पर चर्चा करता है और आध्यात्मिक और नैतिक ज्ञान की दिशा में संभावित मार्गों की खोज करता है इस अशांत युग से गुजरने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। पौराणिक कथाओं दार्शनिक अन्वेषण और व्यावहारिक सलाह के मिश्रण के माध्यम से यह पुस्तक घोर कलियुग के अंधेरे को आशा और लचीलेपन से रोशन करने का प्रयास करती है।
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