<p style=text-align: center; ><b>ज्ञान से सद्गति की ओर...</b></p><p><br></p><p>बेहोशी लाचारी अज्ञानता और दुःखों से भरी ज़िंदगी जीते-जीते इंसान एक ऐसी अवस्था की कामना करने लगता है जहाँ पहुँचकर उसे इन सब दुःखदायी बातों से स्थायी मुक्ति मिल सके। उसे सद्गति प्राप्त हो सके। ऐसी सद्गति जिसे पाकर वह सिर्फ आनंद शांति और सुकून के सागर में गोते लगाए।</p><p>गीता में श्रीकृष्ण दावा करते हैं कि ऐसी सद्गति संभव है और सच्चे ज्ञान से ही संभव है। जो सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं है यह अनुभव से पता करनेवाला ज्ञान है। यही ज्ञान इंसान को उसकी पतित गति से सद्गति की ओर ले जाता है। गीता के अध्याय 7 और 8 पर आधारित यह पुस्तक ज्ञान और सद्गति के मर्म को विस्तार से समझाती है। इस पुस्तक में आप जानेंगे :</p><p>* अध्यात्म की भाषा में ज्ञान और विज्ञान क्या है इनमें क्या अंतर है? </p><p>* वास्तविक ज्ञान का हमारे लिए क्या महत्त्व है? </p><p>* भक्त कितनी तरह के होते हैं? </p><p>* भगवान को कौन से भक्त सबसे प्रिय होते हैं ऐसा भक्त कैसे बनें? </p><p>* सृष्टि के बनने और मिटने की क्या प्रक्रिया है सृष्टि को बनानेवाला ब्रह्मा किसे कहा गया है? </p><p>* ब्रह्म अध्यात्म कर्म अधिभूत और अधिदेव क्या है? </p><p>* जीवन की दृष्टि से जन्म-मरण आवागमन पुनरावृत्ति सद्गति... आदि शब्दों के वास्तविक मायने क्या हैं? </p><p>* देहत्याग के समय इंसान की कैसी समझ होनी चाहिए ताकि उसे सद्गति मिले? </p><p>* उस समझ को पाने की क्या पूर्व तैयारी होनी चाहिए?</p><p>तो आइए इस पुस्तक में दी गई गीता के दो अध्यायों की समझ को आत्मसात् कर हम भी सद्गति की राह पर आगे बढ़ें।</p>
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