अब यह ‘गोदी गांव’ उनके लिए उन साथियों के नाम जो पत्रकारिता के मूल्यों पर निछावर हो गए जिनके परिजन अनायास अपने पत्रकार संरक्षकों के न होने की कीमत चुकाने के लिए विवश हैं और जो आज पत्रकारिता के मूल्यों को बचाने की जद्दोजहद में हैं। ‘गोदी गांव’ एक शब्द-प्रतीकभर है रवीश कुमार के दिए अक्षरों का। ‘गोदी’ को क्या कहना-बताना। गांव हमारे देश के हमारी मिट्टी हमारे वीर किसानों के जो लगातार तेरह महीने तक दिल्ली की सरहदों पर लड़ते रहे लौटे तो जीतकर।