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About The Book
Description
Author
सच्चे अर्थों में अलौकिक प्रेम ही वास्तविक प्रेम होता है। लौकिक प्रेम तो महज़ औपचारिक होता है। अलौकिक प्रेम की प्राप्ति हर किसी के लिये सम्भव नहीं, यह बिरले लोगों को ही प्राप्त होता है। अलौकिक प्रेम का होना रूह की उदात्तता पर निर्भर करता है, वरना लौकिक प्रेम तो हर किसी को सहज सुलभ है। अगर किसी का रूहानी प्रेम आजीवन जिस्मानी सानिध्य को भी प्राप्त होता है तो वह एक-दूसरे की इबादत है, पूजा-आराधना है और समाधि की अवस्था की प्राप्ति के लिये स्वर्ण-सोपान है।