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About The Book
Description
Author
विरासत की बुनियाद गहरा हो तो विकासवाद की प्रगतिशील राह को मजबूत किया जा सकता है। क्योंकि जड़ मजबूत नहीं हो तो इमारत की आयु लंबी नहीं होगी। अपनी गौरवमयी विरासत को समझने में यह पुस्तक मददगार साबित हो सकता है। इस पुस्तक में मैंने मीनापुर और इसके आसपास की कुछ ऐसी जानकारियों को सहेजने का प्रयास किया है जिसका जुड़ाव राष्ट्रीय पटल से है। पर कतिपय कारणों से आज यह हमारे स्मृति पटल से विलुप्त होने लगा है। इसका संबंध हमारे गौरवशाली विरासत से है...पूर्वजों के बलिदान से है...और हमारे आत्मगौरव की अनुभूति से है। इस पुस्तक में उस रहस्यमयी स्तंभ का जिक्र है जिसको लम्हों की खामोशी ने उलझा दिया है। इतिहास के पन्नों में दर्ज वह अतीत जो आज हमारे विकासवाद के खोखले दावों के बीच दम तोड़ रहा है। अध्यात्म का वह विशाल केंद्र जहाँ दशकों पहले रूढ़िवाद ने दम तोड़ा था। वह कालजयी महामानव जिसके ‘कैवल्य दर्शन’ के समक्ष दुनिया नतमस्तक है। परसौनी राजवंश का बनता-बिगड़ता साम्राज्य और ढहते-ढनमनाते इमारत के खंडहर में बिखरे पड़े हुकूमत की दास्तान...। इस पुस्तक में उन्हीं यादों को समेटने-सहेजने की कोशिश की गई है। इस पुस्तक में 11 अगस्त 1942 से 16 अगस्त 1942 के बीच हुई घटनाओं का जिक्र है। आजादी के लिए गाँव में लड़े गये आंदोलन का जिक्र है। यातनाओं और शहादत का जिक्र है। इसके अतिरिक्त जन समस्या और परिश्रम की उपलब्धियों का भी जिक्र है...और भी बहुत कुछ है इस पुस्तक में...।