यह संग्रह जयशंकर प्रसाद की कुछ महत्त्वपूर्ण कहानियों का संकलन है जिसमें विशेष रूप से उनकी चर्चित कहानी गुंडा को केंद्र में रखकर चुनी हुई अन्य रचनाओं को सम्मिलित किया गया है। जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के उन युगप्रवर्तक लेखकों में से हैं जिन्होंने कथा नाटक और कविता- सभी में अपने समय की जटिलता संवेदना और सामाजिक परिवर्तन की धड़कनों को गहराई से अभिव्यक्त किया। उनकी कहानियों में केवल घटनाएँ नहीं घटतीं बल्कि पात्नों के भीतर और बाहर चल रहे संघर्षों का गूढ़ अंकन मिलता है। गुंडा जैसी रचना जयशंकर प्रसाद की कथा-कला की विशेषताओं को उजागर करती है। साधारण और असामाजिक कहकर दूर धकेले गए पात्नों तक वे करुणा और मानवीय दृष्टि से पहुँचते हैं। उनके माध्यम से समाज की रुढ़ धारणाओं और नैतिक मानकों पर प्रश्न खड़ा होता है। इस संग्रह की अन्य कहानियाँ भी पाठक को इसी तरह मानवीय जटिलताओं और सामाजिक विषमताओं के बीच ले जाती हैं। जयशंकर प्रसाद का गद्य संवेदनशील काव्यात्मक और गहन दार्शनिकता से युक्त है जिसमें हिंदी भाषा की मृदुता और सौंदर्य पूरी गरिमा से झलकता है। यह पुस्तक हिंदी साहित्य के गंभीर पाठकों शोधार्थियों और नए उत्सुक पाठकों - सभी के लिए पठनीय व संग्रहणीय है।
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