रवींद्रनाथ टैगोर एक ऐसे कवि थे जिनका जुनून मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं को साकार रूप में प्रस्तुत करना था। वे मानवता की नब्ज पहचानने वाले कवि थे। उन्होंने हमें जीवन की अनंत गाथा से परिचित कराया। बचपन से ही वे काव्य जगत में रमे रहते थे और घर की चारदीवारी के बाहर प्राकृतिक सौन्दर्य के स्वप्न देखा करते थे। उन्होंने चित्रकला का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया। अपने 81 वर्षों के जीवन में उन्होंने 68 वर्ष साहित्य-साधना में बिताए और सैकड़ों पद्य रचे। 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को 'गीतांजलि' के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 'सर' की उपाधि दी जिसे उन्होंने 'जलियाँवाला बाग हत्याकांड' के आक्रोश में त्याग दिया। उन्होंने भारत के सांस्कृतिक संदेश को दुनिया भर में फैलाया और उपनिवेशवाद स्वार्थपरता और संकीर्ण संकीर्णता का खुलकर विरोध किया। रवींद्रनाथ टैगोर एक परोपकारी और स्वाभाविक प्रेमी थे। उन्होंने विश्व संस्कृतियों के मिलन स्थल विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। उन्होंने गाँवों के सुधार और संवर्धन के लिए एक केंद्र 'श्रीनिकेतन' की भी स्थापना की। उनके आध्यात्मिक विचारों पर संत कवियों के हिंदी साहित्य का प्रभाव था। उनकी सरल कविताएँ उपनिषदों के विचारों से ओतप्रोत हैं। वे महान हिंदी कवि कबीरदास से प्रेरित थे। वे तत्कालीन दार्शनिक राजनीतिक और समाजशास्त्रीय प्रवृत्तियों से भली-भांति परिचित थे। वे दूसरों की सहायता और मानवता की सेवा को ही ईश्वर प्राप्ति का वास्तविक मार्ग मानते थे।
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