शांति और आनंद का सीधा सम्बन्ध धन से होकर जीवन जीने की कला से है। इस कला का विवरण हमारे प्राचीन सदग्रन्थों में मिलता है। इस ज्ञान संपदा का संक्षिप्त रूप से परिचय कराने के उद्देश्य से यह पुस्तक लिखी गई है। इस पुस्तक में विषय-वस्तु को छः भागों में संकलित किया गया है। भाग-एक प्रेरक प्रसंग हमारे जीवन मूल्यों को दृष्टान्तों के माध्यम से समझाते हैं। भाग दो में विविध ग्रन्थों के महत्वपूर्ण कुछ संस्कृत श्लोकों का संकलन किया गया है। भाग 3 - शास्त्र सारांश - हमारे प्राचीन ग्रन्थों की झलक हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं। भाग 4 में पारिभाषिक शब्दावली शास्त्रों के पढने में सुगम बनाने हेतु दी गई है। भाग 5 में परिवार-प्रबन्धन और भाग 5 में कुछ मौलिक रचनामों का समावेश किया गया है। हमारे माता पिता पूर्वजों एवं गुरुजनों को हम वंदन करते हैं जिनके त्याग और व्यवहारिक प्रशिक्षण से हमारी योग्यता में अभिवृद्धि हुई है। इस कार्य को सफल बनाने में हमारे पूर्व सहयोगी श्री वीरेन्द्रसिंह सिकरवार ने निस्वार्थ भाव से हमारी सहायता की है उन्हें धन्यवाद और साधुवाद।
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