मानवीय मूल्यों एवं मन की विभिन्न मनोदशाओं के चित्रण पर प्रकाश डालती हुई कहानियों का संग्रह है ‘हफ़्ता वसूली’। इस संग्रह के पात्र हमें अपने समीप ही विचरते दिखाई दे जाते हैं। जहाँ ‘हफ़्ता वसूली’ कहानी में नंदिता और बाबा के बीच कोई रिश्ता न होते हुए भी एक संवेदनशीलता की डोर दोनों को मानवीय सम्बंध में जोड़ती है वहीं ‘पूजा का शंख’ सविता के वात्सल्य और अनीस की मासूमियत से बने रिश्ते को दर्शाती है। ‘विदाई पार्टी’ और ‘सेवानिवृत्ति’ सरकारी सेवा से निवृत्त व्यक्तियों के विभिन्न मनोदशाओं से गुजरने की कहानियाँ हैं।जहाँ ‘साक्षात्कार’ कहानी में रजनी दस्तावेज खो जाने से हुई परेशानी से जूझती नज़र आती है वहीं ‘वारिस’ में स्नेहलता और जूली अन्धविश्वास की दीवारों को तोड़ने का प्रयास करती समाज के विरुद्ध संघर्ष करती दिखती हैं। कोरोना के समय मानवीय संवेदनाओं को दर्शाती कहानियाँ ‘और मानवता जीत गई’ तथा ‘नजरिया’ भी अपनी विशेष छवि छोड़ती हैं। ‘परिन्दे’ व्यस्त समाज में बुजुर्गों के एकाकीपन के दर्द को बयान करती कहानी है। ‘काश...’ ‘ऑफिस में योगा डे’ ‘फुटबॉल का खेल बनाम सरकारी कार्य’ ‘मक्खन लगाते हुए खुद का मक्खन हो जाना’ ‘अनुभव’ सरकारी कार्य शैली पर कटाक्ष करती हुई व्यंग्यात्मक शैली की कहानियाँ हैं। अंत में ‘आजादी का दिन’ एक वर्ग की बेबसी दर्शाती हुई कहानी है।
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