हमारा तिलकेश्वर बिहार के दरभंगा के एक पंचायत की कहानी है लेकिन उससे भी अधिक यह उस मिट्टी की कहानी है जहाँ सपने जन्म लेते हैं और जहाँ मेहनत के दम पर बदलाव की शुरुआत होती है। यह पुस्तक तिलकेश्वर पंचायत के एक ऐसे नेतृत्वकर्ता की यात्रा को सामने लाती है जिसने अपने जीवन की कठिनाइयों को कभी अपने रास्ते में बाधा नहीं बनने दिया। गरीबी में बीते बचपन जीवनयापन के संघर्ष मुंबई में मजदूरी गाँव लौटकर दुकान चलाना और फिर वर्षों की मेहनत के बाद पंचायत का नेतृत्व संभालना । यह यात्रा दर्शाती है कि वास्तविक परिवर्तन अक्सर दूर नहीं हमारे आसपास ही पनपते हैं।इस पुस्तक में गाँव की छोटी-बड़ी चुनौतियाँ लोगों की उम्मीदें और विकास के उन कदमों की पूरी तस्वीर मिलती है जिन्हें अक्सर दस्तावेज़ों में जगह नहीं मिलती। गाँव में सड़क बनना नाली तैयार होना आवास योजनाओं का लोगों तक पहुँचना सफाई व्यवस्था का सुधार सामुदायिक भवनों का निर्माण ये सब केवल सरकारी योजनाएँ नहीं बल्कि उन फैसलों का परिणाम हैं जो किसी नेता की नीयत और समर्पण को दिखाते हैं। यही बातें इस कहानी को सच्चा और ज़मीन से जुड़ा बनाती हैं।“हमारा तिलकेश्वर” हर उस व्यक्ति के लिए है जो यह समझना चाहता है कि पंचायत स्तर का नेतृत्व कैसा होता है और कैसे एक साधारण इंसान परिस्थितियों से लड़ते हुए अपने क्षेत्र में असाधारण बदलाव ला सकता है। यह पुस्तक उन युवाओं के लिए प्रेरणा है जो अपने गाँव से प्यार करते हैं और समाज में योगदान देना चाहते हैं। उन पाठकों के लिए दर्पण है जो अपने गाँव का अतीत वर्तमान और दिशा एक नई नज़र से देखना चाहते हैं और उन शोधकर्ताओं के लिए दस्तावेज़ है जो ग्रामीण भारत की असली तस्वीर को समझना चाहते हैं। यह केवल एक व्यक्ति की जीवनी नहीं बल्कि एक पूरी पंचायत की सामूहिक कहानी है-लोगों के विश्वास संघर्ष और उम्मीदों की कहानी। तिलकेश्वर को “हमारा तिलकेश्वर” बनाने वाली भावनाएँ अनुभव और नेतृत्व इस पुस्तक के हर पन्ने में जीवंत हैं।यदि आप ऐसी कहानियाँ पढ़ना पसंद करते हैं जो दिल को छू जाएँ सोच को बदल दें और गाँव के प्रति गर्व से भर दें तो यह पुस्तक आपकी अगली पसंद अवश्य होगी।
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