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About The Book
Description
Author
श्री अशोक सिंहल जी ने जीवन के अंतिम दिनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत को अपने जीवन के दो प्रकल्पों के बारे में बताया; एक—अयोध्या में भगवान् श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण और वेदों का प्रचार। इससे माननीय अशोक सिंहलजी के स्पष्ट उद्देश्य और उनके जीवन के उद्देश्य-प्राप्ति की जीवटता का पता चलता है। उन्होंने अपने जीवन से यह प्रेरणा दी कि ‘एक जीवन एक उद्देश्य’ को भलीभाँति कैसे जिया जाता है। अशोकजी नवयुवकों के पुरुषार्थ पर बहुत अधिक विश्वास करते थे और उनका मार्गदर्शन करते थे। वह व्यक्ति जिसने एक इतिहास बनाया। डरे-सहमे हिंदू समाज में आत्मविश्वास जगाया। विश्व के हिंदू मन को आलोडि़त कर दिया। अपने बारे में वे कम बताते थे यानी आत्मश्लाघा से परे थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र-कार्य के लिए समर्पित कर दिया और अंगीकार किया माँ भारती की अनवरत साधना का महाव्रत। हिंदू हृदयसम्राट् अशोक सिंहलजी जैसे इतिहास-पुरुष का प्रेरणाप्रद जीवन वर्तमान की एवं भविष्य की पीढि़यों के लिए पाथेय है कि कैसे सर्वसंपन्न होने के बावजूद एक ध्येय के लिए अपने जीवन को राष्ट्रयज्ञ में होम कर दो।.