किताब से कितने डॉक्टर इंजीनियर और प्रोफेसर बने हैं और आगे भी बनेंगे। वेदों से कितने महाचमत्कारी और महान लोग बने हैं और आगे भी बनते रहेंगे। जो अच्छा बनना चाहता है वह चाहे पढ़े या न पढ़े अगर उसके पास एक अच्छी किताब है तो वही किताब उसे सही मार्ग दिखा देती है। किताब से सीखते-सीखते इंसान थक सकता है लेकिन किताब बाँटते-बाँटते कभी नहीं थकती जो किताब से प्रेम करता है वह कभी बुरा नहीं बन सकता। यही शक्ति किताब और वेदों में हमेशा रही है और सदा रहेगी। किताब वह अनमोल रत्न है जिसके आगे हीरा मोती सोना और चाँदी भी तुच्छ लगते हैं। हमारी नजर में पाँच करोड़ का मोबाइल लेकर घूमने वाला व्यक्ति मूर्ख हो सकता है पर पाँच रुपये का अखबार लेकर घूमने वाला मूर्ख अपने आप किनारे हो जाता है। किताब वह आईना है जिसमें चेहरा नहीं बल्कि भविष्य दिखाई देता है-सोच अपनी-अपनी होती है।
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