यह किताब हिंदी सिनेमा जगत के प्रतिष्ठित संगीत निर्देशकों की एक-एक प्रतिनिधि फ़िल्म के बहाने उनकी संगीतपरक वैचारिकी का दस्तावेज़ तैयार करती है। इसमें पंकज मलिक से लेकर भूपेन हजारिका तक एक बड़ी संगीत परंपरा में फ़िल्मों के सतरंगे विस्तार पर बात की गई है। बीते दिनों के महान गायक के.एल. सहगल एवं अमीरबाई कर्नाटकी से लेकर सदाबहार उस्तादों मोहम्मद रफ़ी लता मंगेशकर किशोर कुमार आशा भोंसले और अलका याज्ञनिक जैसी मशहूर हस्तियों के दिलचस्प प्रसंग पिरोए गए हैं। समाज और सिनेमा के बीच आवाजाही में संगीत ने कैसे हमारी दिन ब दिन की ज़िंदगी को बदला संवारा और रोचक बनाया है हमसफ़र इसकी पड़ताल है। इसमें संगीतकारों एवं उनकी संगे-मील फिल्मों के बहाने संगीत-प्रधान फिल्मों की गंभीर आलोचना की गई है। सिनेमा के सुनहरे आंचल में टंके गीत और संगीत के चांद-सितारों की जगमगाहट देखने के लिए यह पुस्तक आपको आमंत्रित करती है।
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