Haqiqat Nagar । हक़ीक़त नगर

About The Book

नब्बे के दशक की शुरुआत में दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज, उसके हॉस्टल और उसके आस-पास की ज़िंदगी है और मोबाइल फ़ोन से पहले के उस दौर में पाँच दोस्तों की लीक से हटकर प्रेम कहानियाँ हैं। एक-एक पाई की अहमियत, दोस्तों के लिए वक़्त ही वक़्त, बिंदासपन और बेफ़िक्री के उस दौर में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक सभी स्तर पर बदलाव साफ़-साफ़ दिखने लगा था। क़र्ज़ से दबे देश को उबारने के लिए कई दलों वाली गठबंधन की सरकार चला रहे पीवी नरसिम्हा राव ने बाज़ार खोल दिए थे। पूरी दुनिया के लिए भारत एक बाज़ार के तौर पर उपलब्ध हो रहा था। विकास की रफ़्तार तेज़ हो गई थी लेकिन समाज शायद पीछे छूट रहा था। सामाजिक ताने-बाने में पैसे की अहमियत बढ़ रही थी, पैसा सुलभ हो रहा था और आपसी तालमेल गड़बड़ाने लगा था। लेकिन इन सबके बीच कुछ युवा ऐसे थे जिनके सपने में परिवार, समाज और देश की अहमियत बरक़रार थी। उनके बीच दोस्तों की चिंता थी, परिवार का सम्मान था, देश की फ़िक्र थी और सत्ता से टकराने का जज़्बा था। अनुरंजन झा की क़लम से निकली अनोखी प्रेम कहानियों का एक ख़ूबसूरत गुलदस्ता है उपन्यास ‘हक़ीक़त नगर’।
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