तारों की सरगोशियों में जब नींद से कोई बात न हो तब नज़्में कहती हैं वो सारे एहसास जो जज़्बात की ज़मीन से महक-बहक कर फूटे हैं और उछालें मारते हैं कभी एक नव यौवना हिरनी के जैसे तो कभी तेज़ रफ़्तार से आ कर सिमट जाते हैं सागर में भाटा हो जैसे। पल-पल बदलते से एहसास मगर मजाल है कि मुहब्बत ज़रा भी कम हो। इस कसक में कोई अपनी कसक महसूस न करे… हो ही नहीं सकता! ऐसे ही हसीन जज़्बातों से लबरेज कुछ हर्फ़ कुछ अल्फ़ाज़ कुछ नए अन्दाज़ कुछ पुराने छूटे आग़ाज़ से उठी हुई नज़्मों का संग्रह है- ''हर बात में तेरा ज़िक्र''। नज़्मकारा करुणा राठौर ''टीना'' ने हर नज़्म में अपनी धड़कनें पिरोयी हैं। गहरे जज़्बातों में गूँथी ये नज़्में पढ़ कर आप अपनी मुहब्बत में आये उतार चढ़ावों की संजीदगी भी महसूस कर सकते हैं।
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