हिन्दी कविताएँ लिखते हुए जब ग़ज़ल की सामर्थ्य ने मझे आकर्षि किया तो मैंने उसे अपनी काव्य–चेतना के वाहक के रूप में अपना लिया। इसके लिए पहले मैंने ग़ज़लकी शिल्प-शक्ति को अर्जित किया उसके स्वभाव और संस्कृति को आत्मसात किया और फिर अपनी ही बोली-बानी में ग़ज़लें लिखने का प्रयास किया। इस तरह लगभग पैंतालीस साल पहले मझे ग़ज़ल का संग-साथ मिला जो आज भी अनवरत चल रहा है।--हरेराम समीप
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