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About The Book
Description
Author
हिन्दी कविताएँ लिखते हुए जब ग़ज़ल की सामर्थ्य ने मझे आकर्षि किया तो मैंने उसे अपनी काव्य–चेतना के वाहक के रूप में अपना लिया। इसके लिए पहले मैंने ग़ज़लकी शिल्प-शक्ति को अर्जित किया उसके स्वभाव और संस्कृति को आत्मसात किया और फिर अपनी ही बोली-बानी में ग़ज़लें लिखने का प्रयास किया। इस तरह लगभग पैंतालीस साल पहले मझे ग़ज़ल का संग-साथ मिला जो आज भी अनवरत चल रहा है।--हरेराम समीप