मैं वही प्रकाश बनने जा रहा हूँ मैं उसी सौभाग्य को मनुष्य जाति के सामने प्रकट करने जा रहा हूँ लेकिन इस जन्म में नहीं-यह तो तैयारी में ही गुजर जायेगा। मैं सचेतन रूप से इस यात्रा को एक एक कदम करके संपन्न कर रहा हूँ। अब लोग मुझे निवृत्ति मार्गी समझते हैं आलसी पाखंडी आदि समझते हैं कि क्या समझते हैं यह लोगों की बात है। मैं मेरे भीतर बैठा परमात्मा और अशरीरी संत जन तो जानते हैं- वे तो साक्षी हैं कि मैं प्रवृत्त हूँ श्रमशील हूँ और एक यज्ञ में जुटा हुआ हूँ जो मेरे अपने लिये नहीं-समस्त जीव जगत् के कल्याण के लिये है-इस पृथ्वी के कल्याण के लिये हैं- यही है संक्षिप्त परिचय मेरे अध्यवसाय का - जीवन के पल पल होते आहुति का। मेरा जीवन अंतर्मुखता की पराकाष्ठा है।
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